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एग्री बिजनेस

ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के लिए स्टार्टअप्स को बढ़ावा देगी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी

ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के लिए स्टार्टअप्स को बढ़ावा देगी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी

चंडीगढ़। ग्रामीण क्षेत्र के बेरोजगार युवाओं और किसानों के लिए चौ. चरन सिंह एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (Chaudhary Charan Singh Haryana Agriculture University (CCSHAU) Hisar, Haryana ) स्टार्टअप्स (startups)  को बढ़ावा देने जा रही है। ऐसे किसान जो अपनी फसल के उत्पादन को बदलना चाहते हैं, उनके लिए यह अच्छा विकल्प हो सकता है।

वास्तव में चौ. चरन सिंह एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हरियाणा ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है।

एग्री बिजनेस इन्क्यूबेशन सेंटर (एबीक - (Agri-business Incubation Centre -ABIC)) चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (सीसीएसएचएयू) हिसार, हरियाणा में होस्ट किया गया है और नेशनल बैंक ऑफ एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) द्वारा समर्थित है। एबीक कृषि व्यवसाय और उद्यमिता विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी के उत्थान व नवीनीकरण और कौशल विकास का सहारा लेगी। एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी इस योजना के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाना चाहती है। यूनिवर्सिटी इस योजना से किसानों और बेरोजगार युवाओं को जोड़कर स्टार्टअप के लिए नई तकनीकी व आर्थिक सहायता उपलब्ध कराएगी।

65 कम्पनियों ने रजिस्ट्रेशन कराया है पिछले तीन सालों में

हरियाणा की चौ. चरन सिंह एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता के अनुसार पिछले तीन सालों में 65 कम्पनियों ने रजिस्ट्रेशन कराया है। इससे बेरोजगार युवाओं और किसानों को स्वरोजगार स्थापित कराने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही इच्छुक उम्मीदवारों को पूर्ण तकनीकी जानकारी प्रदान की जाएगी। अब तक इस योजना के लिए 27 इनक्यूबेटि (incubatee) को 3.15 करोड़ रुपए का अनुदान राशि प्राप्त हो चूका है, जो 250 से अधिक लोगों को स्वरोजगार प्रदान करने जा रहा है।
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सामाजिक संस्था नाबार्ड भी कर रही है सहयोग

एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की इस योजना को सफल बनाने के लिए सामाजिक संस्था नाबार्ड भी भरपूर सहयोग कर रही है। एग्री बिजनेस इन्क्यूबेशन सेंटर (एबीक) को अपनी गतिविधियों को बढाने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए और नाबार्ड ऐसे प्रयास में अपना योगदान देने को तैयार रहती है। पिछले दशकों से लगातार एबीक का प्रदर्शन काफी शानदार रहा है। केन्द्र ने भी विशेष तौर पर इसकी सराहना की है।
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युवाओं के लिए बेहतर विकल्प

इस योजना के अंतर्गत किसानों को स्वरोजगार के साथ-साथ युवाओं को भी शामिल किया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह योजना युवाओं के लिए एक बेहतर विकल्प है। किसानों के उत्पादों की प्रोसेसिंग, मूल्य संवर्धन, पैकेजिंग, ब्रांडिंग और सर्विसिंग तमाम महत्वपूर्ण कार्यों के लिए मार्गदर्शन के साथ वो अपना खुद का एक व्यवसाय खड़ा कर सकते हैं। जो भविष्य के लिए अच्छा अवसर हो सकता है। ------ लोकेन्द्र नरवार
जल्द ही इस राज्य के 3.17 लाख किसानों को मिलेगा बिना ब्याज का फसल ऋण

जल्द ही इस राज्य के 3.17 लाख किसानों को मिलेगा बिना ब्याज का फसल ऋण

केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए लगभग सभी राज्य सरकारें अपने स्तर पर प्रयास भी कर रही हैं। जिसके अंतर्गत सरकारें किसानों को खाद बीज से लेकर सौर कृषि सिंचाई पंप तक उपलब्ध करवा रही हैं, ताकि किसान अपनी उत्पादकता को तेजी से बढ़ा सकें। खेती करने के लिए किसानों को सरकारें ऋण भी उपलब्ध करवाती हैं, ताकि किसानों को धन की कमी न पड़े। कई बार तो किसानों की ब्याज भी सरकारें खुद ही वहन करती हैं, ताकि किसानों के ऊपर अतिरिक्त बोझ न पड़े।


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इस कड़ी में राजस्थान सरकार भी अपने किसानों का खास ख्याल रखते हुए उन्हें धन उपलब्ध करवा रही है। ताकि किसानों को पैसों की तंगी का सामना न करना पड़े। राजस्थान की कैबिनेट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए कहा है, कि राज्य सरकार राजस्थान के किसानों को लोन देने की योजना में 3.17 लाख अतिरिक्त किसानों को शामिल करने जा रही है। जिसमें किसानों को बिना ब्याज के लोन बांटा जाएगा, साथ ही यह काम मार्च 2023 के पहले पूर्ण कर लिया जाएगा। इसके पहले किसानों को लोन देने की योजना के अंतर्गत इस साल नवम्बर माह तक सरकार ने 26.92 लाख किसानों को लोन बांटा है। इस योजना के अंतर्गत सरकार ने किसानों को अब तक 12 हजार 811 करोड़ रुपये का लोन दिया है। राजस्थान सरकार ने इस योजना में इस साल 1.29 लाख नए किसानों को जोड़ा है। अब इस योजना को आगे बढ़ाते हुए राज्य सरकार सभी किसानों को सहकारी समितियों के साथ जोड़ रही है। जो किसानों को बेहद आसानी से लोन उपलब्ध करवाती हैं।


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किसानों को लोन उपलब्ध करवाने की जानकारी सहकारिता विभाग के अधिकायों ने एक बैठक में दी। यह बैठक जयपुर स्थित अपेक्स बैंक के हॉल में पूर्ण हुई। इस अवसर पर अधिकारियों ने बताया कि राज्य सरकार किसानों को बिना ब्याज का ऋण उपलब्ध करवाने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके लिए राज्य सरकार नेशनल बैंक फॉर रूरल एंड एग्रीकल्चर डेवलपमेंट (नाबार्ड) की योजनाओं का उपयोग करेगी। अपेक्स बैंक के हॉल में हुई मीटिंग में अधिकारियों ने बताया कि सरकार लगातार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए प्रयत्न कर रही है। इसको ध्यान में रखते हुए किसानों को एग्री बिजनेस के मॉडल से जोड़ने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं। अगर केंद्र सरकार की बात करें तो केंद्र सरकार ने खेती बाड़ी को बढ़ावा देने के लिए एग्री क्लिनिक-एग्री बिजनेस सेंटर योजना की भी शुरुआत की है। इन योजनाओं का लाभ उठाकर किसान भाई कृषि का धंधा या कृषि स्टार्टअप की शुरुआत कर सकते हैं, जिससे किसानों को अपनी आमदनी बढ़ाने में मदद मिल सकती है।


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इसके साथ ही बैठक के दौरान बताया गया कि एग्री क्लिनिक-एग्री बिजनेस सेंटर योजना के अंतर्गत सरकार किसान को 45 दिनों का प्रशिक्षण देती है। यह प्रशिक्षण सरकार की तरफ से कृषि लोन या आर्थिक सहायता मिलने से पहले ही दिया जाता है। जिससे किसान को कई तरह के फायदे होते हैं ओर वह अपने बिजनेस को तेजी से आगे बढ़ा सकता है। पहले जहां किसानों को सहकारी समितियों से सीमित मात्रा में ही लोन मिलता था और उसके लिए किसानों को बहुत सारी परेशानियां झेलनी पड़ती थी। लेकिन अब स्थिति परिवर्तित हो रही है। अगर वर्तमान की बात करें तो अब एग्री बिजनेस यानी कृषि से जुड़ा कोई भी व्यवसाय करने के लिए नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) बहुत आसानी से लोन उपलब्ध करवाता है। यह लोन 20-25 लाख रुपये तक हो सकता है, जिसके लिए किसानों को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना होता है।


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अगर किसानों को आर्थिक तौर पर सशक्त करने की बात करें, तो केंद्र सरकार ने कई योजनाएं चलाई हैं। जिन योजनाओं के माध्यम से किसानों को सब्सिडी उपलब्ध कारवाई जा रही है ताकि किसानों के ऊपर अतिरिक्त बोझ न पड़ने पाए। यह सब्सिडी ऋण पर लगने वाले ब्याज पर दी जाती है, जो 36 प्रतिशत से 44 प्रतिशत तक हो सकती है। इस सब्सिडी योजना में समान्य वर्ग के किसान को ब्याज पर 36 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाती है जबकि एससी-एसटी और महिला आवेदकों को ब्याज पर 44 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान की जाती है। केंद्र सरकार की योजना के अनुसार यदि 5 या 5 से अधिक किसान ऋण लेने के लिए एक साथ आवेदन करते हैं, तो उन्हें 1 करोड़ रुपये तक का ऋण दिया जा सकता है, साथ ही केंद्र सरकार किसानों को प्रशिक्षण भी दिलवाती है।
यूपी के इस जिले की हींग को मिला जीआई टैग किसानों में दौड़ी खुशी की लहर

यूपी के इस जिले की हींग को मिला जीआई टैग किसानों में दौड़ी खुशी की लहर

भारतीय मसालों का स्वाद देश ही नहीं पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता है। भारत के विभिन्न प्रकार के मसालों को विदेश में भी अत्यंत पसंद किया जाता है। इसके अतिरिक्त भारतीय मसालों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वयं की एक अनोखी पहचान स्थापित की हुई है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि हींग जिसको हम सभी अपने भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग करते हैं। हींग को हम भारतीय व्यंजनों में स्वाद को बढ़ाने के लिए उपयोग करने वाला सर्वोत्तम मसाला भी मानते हैं। अपने अनोखे स्वाद और गुणवत्ता की वजह से हींग को वर्तमान में केवल भारतीय मसालों में ही सम्मिलित नहीं किया गया है, इसने विदेशी बाजार के अंदर भी अपनी एक हटकर पहचान स्थापित की है। बतादें, कि उत्तर प्रदेश के एक जिला एक उत्पाद में शम्मिलित हाथरस की हींग को भौगोलिक संकेत यानी जीआई टैग प्रदान किया गया है। इसके उपरांत से ही देश-दुनिया के बाजारों में भारतीय हींग की मांग में काफी वृद्धि देखने को मिली है।

रोजगार के नवीन अवसर उत्पन्न होंगे

मीड़िया द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुरूप, विश्व स्तर पर हींग को पहचान हाँसिल होने के उपरांत यह अंदाजा लगाया जा रहा है, कि भारत के बहुत से युवाओं के लिए रोजगार के नवीन अवसर उत्पन्न होंगे। साथ-साथ लोगों की आर्थिक परिस्तिथियों में भी सुधार देखने को मिलेगा। बतादें, कि उत्तर प्रदेश की हाथरस हींग को जीआई टैग प्राप्त होने के उपरांत भारतीय व्यापारियों को विदेशों में अपने व्यवसाय को विस्तृत करने में काफी सुगमता रहेगी। अगर हम नजर ड़ालें तो विदेशों में केवल हींग ही नहीं हाथरस की नमकीन, रंग, गुलाल एवं गारमेंट्स आदि भी काफी प्रसिद्ध हैं। यह भी पढ़ें: जानें मसालों से संबंधित योजनाओं के बारे में जिनसे मिलता है पैसा और प्रशिक्षण

जीआई टैग होता क्या है

जीआई टैग का पूरा नाम जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग होता है, यह किसी स्थान विशेष की पहचान होता है। सामान्यतः जीआई टैग किसी भी स्थान विशेष के उत्पाद को उसकी भौगोलिक पहचान प्रदान करता है। रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट-1999 के अंतर्गत भारतीय संसद में जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स जारी किया गया था। यह किसी प्रदेश को किसी विशेष भौगोलिक परिस्थितियों में मिलने वाली वस्तुओं हेतु विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार प्रदान करता है। ऐसी परिस्थितियों में उस विशेष इलाके के अतिरिक्त उस उत्पाद की पैदावार नहीं की जा सकती है।

जी आई टैग की आवेदन प्रक्रिया

जीआई टैग के लिए कंट्रोलर जनरल ऑफ पेरेंट्स, डिजाइंस एंड ट्रेड मार्क्स के कार्यालय में आवेदन किया जा सकता है। चेन्नई में इसका मुख्य कार्यालय मौजूद है। यह संस्था आवेदन के पश्चात इस बात की जाँच पड़ताल करती है, कि यह बात कितनी ठीक है। इसके उपरांत ही जीआई टैग प्रदान किया जाता है।
कपास की खेती की संपूर्ण जानकारी

कपास की खेती की संपूर्ण जानकारी

कपास एक प्रमुख रेशा फसल है। कपास सफेद सोने के नाम से मशहूर है। इसके अंदर नैचुरल फाइबर विघमान रहता है, जिसके सहयोग से कपड़े बनाए जाते हैं। भारत के कई इलाकों में कपास की खेती काफी बड़े स्तर पर की जाती है। इसकी खेती देश के सिंचित और असिंचित इलाकों में की जा सकती है। इस लेख में हम आपको कपास की खेती की संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं

कपास की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

कपास की खेती भारत के उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है। इसकी सफलतापूर्ण खेती करने के लिए निम्नतम तापमान 21 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त माना जाता है।

कपास की खेती के लिए उपयुक्त मृदा

कपास की खेती के लिए गहरी काली मिट्टी एवं बलुई दोमट मिट्टी उत्तम होती है। वहीं, मिट्टी में जीवांश की पर्याप्त मात्रा होनी अनिवार्य है। इसके साथ-साथ जलनिकासी की भी बेहतर व्यवस्था होनी चाहिए।

कपास की खेती के लिए प्रमुख किस्में

कपास की प्रमुख उन्नत किस्में इस प्रकार हैं

बीटी कपास की किस्में- बीजी-1, बीजी-2 कपास की संकर किस्में- डीसीएच 32, एच-8, जी कॉट हाई. 10, जेकेएच-1, जेकेएच-3, आरसीएच 2 बीटी, बन्नी बीटी, डब्ल्यू एच एच 09बीटी ये भी देखें: महाराष्ट्र में शुरू हुई कपास की खेती के लिए अनोखी मुहिम – दोगुनी होगी किसानों की आमदनी कपास की उन्नत किस्में- जेके-4, जेके-5 तथा जवाहर ताप्ती आदि

कपास की खेती के लिए बुवाई का समय तथा विधि

आमतौर पर कपास की बुवाई वर्षाकाल में मानसून आने के वक्त की जाती है। परंतु, अगर आपके पास सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं है, तो आप मई माह में कपास की बुवाई की जा सकती है। कपास की खेती से पूर्व खेत को रोटावेटर अथवा कल्टीवेटर की सहायता से मृदा को भुरभुरा कर लिया जाता है। उन्नत किस्मों का बीज प्रति हेक्टेयर 2 से 3 किलोग्राम और संकर और बीटी कपास की किस्मों का बीज प्रति हेक्टेयर 1 किलोग्राम उपयुक्त होता है। उन्नत किस्मों में कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर रखी जाती है। लेकिन, संकर और बीटी किस्मों में कतार से कतार की दूरी 90 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 120 सेंटीमीटर रखी जाती है। सघन खेती के लिए कतार से कतार का फासला 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे का फासला 15 सेंटीमीटर रखा जाता है।

कपास की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक

कपास की उन्नत किस्मों से बंपर उपज पाने के लिए प्रति हेक्टेयर सल्फर 25 किलोग्राम, नाइट्रोजन 80-120 किलोग्राम, फास्फोरस 40-60 किलोग्राम और पोटाश 20-30 किलोग्राम देना उचित रहता है। तो उधर संकर व बीटी किस्म के लिए प्रति हेक्टेयर फास्फोरस 75 किलोग्राम, पोटाश 40 किलोग्राम, सल्फर 25 किलोग्राम और नाइट्रोजन 150 किलोग्राम उपयुक्त होता है। सल्फर की पूरी मात्रा बुवाई के दौरान और नाइट्रोजन की 15 प्रतिशत मात्रा बुवाई के वक्त तथा बाकी मात्रा ( तीन बराबर भागों में) 30, 60 तथा 90 दिन के अंतराल पर देनी चाहिए। वहीं, पोटाश एवं फास्फोरस की आधी मात्रा बुआई के समय और आधी मात्रा 60 दिन के उपरांत देनी चाहिए। उत्तम पैदावार के लिए 7 से 10 टन गोबर खाद प्रति हेक्टेयर अंतिम जुताई के वक्त डालना चाहिए।

कपास की खेती के लिए निराई-गुड़ाई एवं सिंचाई

प्रथम निराई-गुड़ाई अंकुरण के 15 से 20 दिनों के पश्चात करनी चाहिए। साथ ही, अगर फसल में सिंचाई की आवश्यकता पड़ रही है, तो हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इससे कीट एवं रोगों का संक्रमण कम रहता है एवं बेहतरीन पैदावार होती है। ये भी देखें: भारत में पहली बार जैविक कपास की किस्में हुईं विकसित, किसानों को कपास के बीजों की कमी से मिलेगा छुटकारा

कपास की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट

गुलाबी सुंडी

कपास की फसल के लिए यदि कोई सबसे बड़ा दुश्मन कीट है, तो वह गुलाबी सुंडी है। जो अपनी पूरी जिंदगी इसके पौधे पर बिताता है। यह कपास के छोटे पौधे, कली और फूल को क्षति पहुंचाकर फसल को बर्बाद कर देता है। इसका संक्रमण प्रति वर्ष होता है।

गुलाब सुंडी का प्रबंधन

गुलाबी सुंडी की रोकथाम करने के लिए कोरोमंडल के कीटनाशक फेन्डाल 50 ई.सी. का छिड़काव करें। फेन्डाल एक बहुआयामी कीटनाशक होता है। यह कीड़े पर दीर्घकाल तक नियंत्रण रखता है। इसके अतिरिक्त, इसमें तेज व तीखी गंध होती है, जो कि वयस्क कीट को अंडा देने से रोकती है।

सफेद मक्खी

दिखने में यह कीट पीले रंग का होता है। परंतु इसका शरीर सफेद मोम जैसे पाउडर से ढंका होता है। सफेद मक्खी कीट पौधे की पत्तियों पर एक चिपचिपा तरल पदार्थ छोड़ता है और पत्तियों का रस चूसता है।

सफेद मक्खी कीट की रोकथाम कैसे करें

सफेद मक्खी कीट प्रबंधन के लिए कोरोमंडल का फिनियो कीटनाशक का उपयोग करें। फिनियो में दो अनोखी कीटनाशकों की जोड़ी है, जोकि दो विभिन्न कार्यशैली से कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त, यह पाइटोटॉनिक प्रभाव से युक्त है, जिसमें कीटों को तुरंत और लंबे समय तक समाप्त करने की क्षमता मौजूद है। यह सफेद मक्खी के समस्त चरणों जैसे- अंड़ा, निम्फ, वयस्क को एक बार में समाधान मुहैय्या कराता है। इसको प्रति एकड़ 400 से 500 मिली की मात्रा की आवश्यकता होती है।

माहू (एफिड) कीट

माहू (एफिड) कीट काफी ज्यादा कोमल कीट होता है। जो दिखने में मटमैले रंग का सा होता है। माहू कीट कपास की पत्तियों को खुरचकर उसके रस को चूस लेता है। इसके बाद पत्तियों पर एक चिपचिपा पदार्थ छोड़ देता है। प्रबंधन- इस कीट पर काबू करने के लिए भी कोरोमंडल के फिनियो कीटनाशक का छिड़काव करें। यह कीटनाशक कीटों को शीघ्र और लंबे समय तक समाप्त करने में कारगर है।

तेला कीट

काले रंग का यह कीट पौधे की पत्तियों को खुरचकर उनके रस को चूस लेता है। प्रबंधन- इसकी रोकथाम करने के लिए कोरोमंडल के फिनियो कीटनाशक का इस्तेमाल करें।

थ्रिप्स

यह रस चूसक कीट है, जो कपास की फसल को काफी ज्यादा हानि पहुंचाता है। प्रबंधन- थ्रिप्स की रोकथाम के लिए भी कोरोमंडल के फिनियो कीटनाशक का छिड़काव कारगर माना गया है।

हरा मच्छर

यह दिखने में पांच भुजाकर और पीले रंग का होता है। इस कीट के आगे के पंखों पर एक काला धब्बा मौजूद होता है। जो कपास की शिशु एवं वयस्क अवस्था में पत्तियों के रस को चूसता है, जिससे पत्तियां पीली पड़कर सूखने लग जाती हैं। ये भी देखें: इस राज्य में किसान कीटनाशक और उर्वरक की जगह देशी दारू का छिड़काव कर रहे हैं प्रबंधन- इस कीट का प्रबंधन करने के लिए पूरे खेत में प्रति एकड़ 10 पीले प्रपंच लगाने चाहिए। इसके अतिरिक्त 5 मिली.नीम तेल को 1 मिली टिनोपाल या सेन्डोविट को प्रति लीटर जल के साथ घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

मिलीगब -

इस किस्म के कीट की मादा पंख विहीन होती है। साथ ही, इसका शरीर सफेद पाउडर से ढका होता है। दरअसल, इस कीट के शरीर पर कालेरंग के पंख होते हैं। यह शाखाओं, फूल पूड़ी, तने, पर्णवृतों और घेटों का रस चूस जाता है। इसके बाद यह मीठा चिपचिपा पदार्थ छोड़ता है। कीट प्रबंधन- इसकी रोकथाम के लिए लिए भी पूरे खेत के आसपास पिले प्रपंच लगाए

जानें कपास की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों के बारे में

पौध अंगमारी रोग

यह रोग पौधे की मूसला जड़ों को छोड़कर मूल तंतूओं को क्षति पहुंचाता है, जिसकी वजह से पौधा मुरझा जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए अनुशंसित कीटनाशक का इस्तेमाल करें।

मायरोथीसियम पत्ती धब्बा रोग

इस रोग की वजह से पत्तियां पर हल्के एवं बाद में बड़े भूरे धब्बे बन जाते हैं, इसके बाद पत्तियां टूटकर जमीन पर गिर जाती हैं। इससे 25 से 30 प्रतिशत पैदावार में कमी आती है। इसके नियंत्रण के लिए अनुशंसित कीटनाशक का इस्तेमाल करें।

अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग

मौसम में हद से ज्यादा नमी के वक्त पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जिनकी वजह से अंत में पत्तियां टूटकर नीचे गिर जाती हैं। ठंड के मौसम में इस रोग की उग्रता ज्यादा हो जाती है। इसका नियंत्रण करने के लिए अनुशंसित कीटनाशक का इस्तेमाल करें।

जीवाणु झुलसा एवं कोणीय धब्बा रोग

यह रोग पौधे के वायुवीय हिस्सों को क्षति पहुंचाता है। जहां छोटे गोल धब्बे बन जाते हैं, जो कि बाद में पीले पड़ जाते हैं। यह कपास की सहपत्तियों एवं घेटों को भी नुकसान पहुंचाता है। इस रोग की वजह घेटा समय से पूर्व ही खुल जाता है, जिससे रेशा बेकार हो जाता है। इसकी रोकथाम करने के लिए अनुशंसित कीटनाशक का इस्तेमाल करें।